मनुष्य शरीर को कंप्यूटर के रूप में कैसे विभाजित करें?

मनुष्य शरीर को कंप्यूटर के रूप में कैसे विभाजित करें?

क्या मनुष्य शरीर को कंप्यूटर के रूप में विभाजित कर सकते हैं। हम अपने शरीर को कंप्यूटर सॉफ्टवेयर, हार्डवेयर और वायरस इन का कैलकुलेशन कैसे करेंगे। एक प्रैक्टिकल के आधार पर जानेंगे कि मनुष्य शरीर को हम कंप्यूटर में कैसे विभाजित करते हैं। पोस्ट को पूरा पढ़ें, चलिए शुरू करते हैं।

शरीर को कंप्यूटर के रूप में कैसे विभाजित करें (How to split body as computer)

कंप्यूटर (Computer) के रूप में मनुष्य शरीर (Human body) के विभाजित करना, दोस्तों जैसे कि आप जानते हैं कि यह ध्यान देने योग्य है कि मन ही विज्ञान का वह चरम अध्ययन है जो इसे आध्यात्मिक (spiritual) से जोड़ता है। जैसे ज्ञान के सिद्धांत प्रयोग की सीमा पर विज्ञान (Science) से जुड़ते चले जाते हैं।

यदि परमात्मा (God) को इस सुंदर कृति को कंप्यूटर (Computer) के रूप में विभाजित करें तो मनुष्य शरीर हार्डवेयर (hardware) और सॉफ्टवेयर (Software) होगा। बहुत ऐसे जैसे एक रंग में देख सकते हैं, लेकिन तन का मन का भिन्नआत्मक अनुभूति लिए होता है।

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यदि हम मानव रचित कंप्यूटर और ईश्वर रचित मानव के सॉफ्टवेयर (Software) की तुलनात्मक अध्ययन करें तो इसमें रोचक समानता प्राप्त होगी। कंप्यूटर के सॉफ्टवेयर की तरह इस मन में भी वायरस (Virus) का ख़तरा होता है। मन में छह प्रकार के वायरस (Virus) विकार अध्यात्म के विश्लेषण में वर्णित हैं।

मनुष्य शरीर वायरस विकार विश्लेषण (Human body virus disorder analysis)

यथा काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह, अहंकार वायरस (Virus) भी कहा जाता है यह प्रकृति प्रदत्त है और मन के साथ ही रहते हैं। तथा जब तक इन में समन्वय बना रहता है इस समय बिंदु पर रहते हैं। किंतु समस्त के अभाव में ए असंतुलित (Unbalanced) होकर अपना प्रतिकूल प्रभाव दिखाने लगते हैं।

जिसकी झलक हार्डवेयर (hardware) के रूप में तन में भी दिखाई पड़ने लगती है, जैसे क्रोधी का तेज गुसैल हुआ चेहरा, अपशब्द युक्त वाणी इसकी चीखना चिल्लाना, लोभी का लाभ अथवा कामी के काम की भावना उसके आंखों में तैरती रहती है।

सॉफ्टवेयर में स्क्रीन (Screen in software)

दोस्तों सॉफ्टवेयर में स्क्रीन (Screen) केवल उसे ही दिखाती है जिसका मन होता है। अर्थात मन दर्पण केवल आप ही देख सकते हैं। दूसरा नहीं, तभी तो उसका असत्य झूठ सहजता से प्रगट नहीं हो पाता है। अपने मन की बात को और वाणी से निकली बात का अंतर कोई समझ नहीं पाता है।

मन रूपी सॉफ्टवेयर (Software) को बंद या शुरू करने की आवश्यकता नहीं है, यह स्वचालित (self drive) है, आपकी सोच सकता अवस्था में भी सक्रिय रहता है। जैसे आप गहरी नींद में सो रहे हैं किंतु स्वप्नलोक में भ्रमण कर रहे हैं।

अर्थात हमारा यह मन रूपी सॉफ्टवेयर (Software) शरीर रूपी हार्डवेयर (Hardware) से सहायता से निकल का भ्रमण कर सकता है। इंटरनेट (Internet) की तरह और अपने स्क्रीन में तस्वीर कर सकता है। जबकि हार्डवेयर (Hardware) रूपी तन की आंखें दुनिया की तस्वीर में स्थल होती हैं।

कमाल का कंप्यूटर यह मानव तन (Amazing computer this human body)

मन ऐसे अनेक बार होता है जब हम अध्ययन रोजगार या व्यापार (Employment or business) के कार्य या कार्य का चिंतन करते हैं। तब हमारा तन कहीं और होता है और मन कहीं और सामने में है और कोई सोच है और कोई ऐसी अवस्था में हम चिंता याद चिंतन की दशा कहते हैं।

मन को यही Virus हमें वायरस हमें सकारात्मक या नकारात्मक अनुभूति देते हैं। जिसे हम सुख या दुख कहते हैं। वास्तव में मन से उत्पन्न अमन के मानस पुत्र सुख और दुख वास्तविक नहीं केवल शस्त्र आग काम क्रोध लोभ मद मोह अहंकार के विकार का प्रतिफल है।

अर्थात हमारी सोच की दशा और दिशा तय करती है कि यह अनुभूति सुख है या दुख है। जैसे एक सहज रूप से दिनचर्या में लगे व्यक्ति को खराब मिले कि उसके पड़ोसी जिससे उसका दुखवा है। एक ने एक कार ले ली और दुखी हो जाएगा। क्योंकि दुख उसकी अनुभूति नकारात्मक (Negative) रहेगी। जबकि प्रत्यक्ष उसके जीवन में इसका कोई प्रभाव नहीं है।

आदमी सुख-दुख के इस सागर में (Man in this ocean of happiness and sorrow)

मन के विकार ग्रस्त होने के कारण वह दुखी हो गया है, इसी के विपरीत स्थिति में उसे यह खराब मिलती है पड़ोसी की कार दुर्घटनाग्रस्त (Accident) हो खराब हो गई, तो कदाचित अंतर्मन में हर्ष अनुभूति होगी। क्योंकि उस व्यक्ति के संदर्भ में सम्बंधित का दृष्टिकोण पूर्ण युक्त है और सुख की स्थिति में आ जाएगा।

आपने देखा कि वास्तव में प्रत्यक्ष उस व्यक्ति के जीवन में कोई घट बढ़ नहीं हुआ है। पर मन में अनुलोम प्रतिलोम (Anulom inverse) होने का फल स्वरुप ही उसे सुख और दुख की अनुभूति है। मन को यह विकार संतुलन के अभाव में पीड़ा देते हैं। जो व्यक्ति की दयनीय को प्रभावित करते हैं और आदमी सुख-दुख के इस सागर में बेहतर डूबता अपने जीवन (Life) को व्यतीत करता जाता है।

विषयों की चिंता करने वाले पुरुष को उन विषयों में आसकते हो जाती है, उन विषयों की कामना उत्पन्न होती है और कामना से विघ्न पढ़ने से क्रोध उत्पन्न होता है, क्रोधी व्यक्ति की दशा बिल्कुल उस व्यक्ति की तरह हो जाती है। जिसे गाँव के लोग अपनी भाषा में भूत प्रेत बाधा से ग्रस्त मानते हैं।

उसे अपने पराए का होश नहीं होता है, शब्द-शब्द में भाव में कब बदल जाते हैं ऐसे आदमी को महसूस ही नहीं होता है, सूखने लगता है ऐसी दयानी दशा क्रोध रूपी बीमार आंखें किए बकवास और मर्यादित हनन करता चला जाता है।

पोस्ट निष्कर्ष

इस तरह से दोस्तों देखा जाए तो यह भगवान (God) के द्वारा रचित हमारी बॉडी भी एक कंप्यूटर (Computer) की तरह काम करता है उदाहरण के लिए लें तो, हमारा जो मस्तिष्क है वह हमारे कंप्यूटर के मुख्य भाग जिसको सीपीयू (CPU) कह सकते हैं और बाक़ी बॉडी को हम हार्डवेयर कर सकते हैं जो हमारे मस्तिष्क की संरचना के अनुसार शरीर चलाएँ मान होता है।

दोस्तों आपने इस आर्टिकल में जाना कि मनुष्य शरीर को कंप्यूटर के रूप में कैसे विभक्त किया गया है, आशा है आपको यह जानकारी ज़रूर अच्छी लगी होगी। इस जानकारी को अपने दोस्तों के साथ सोशल नेटवर्क पर ज़्यादा से ज़्यादा शेयर करें, पोस्ट पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। अगली पोस्ट पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर और अधिक पोस्ट पढ़े।