Hello Friend Welcome to God Gyan Karm करने का उद्देश्य एवं उनके प्रकार, कर्म की परिभाषा, कर्म के सिद्धांत, वास्तव में कर्म क्या है? मानव जीवन में कर्म का क्या महत्त्व है? Karm से क्या पाया जा सकता है। कर्म कैसे हो और कर्म की गति कैसे होती है और कर्मशील की क्या गति होती है, कुछ महान विचारकों के कर्म पर दिए गए वक्तव्य को हम इस आर्टिकल में आपके साथ साझा कर रहे हैं। यह ऑनलाइन शिक्षा का एक चैप्टर है। आप इसे पूरा पढ़ें, यह आपके जीवन में परिवर्तन-परिवर्तन करने में सहायक होगी। चलिए शुरू करते हैं।
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कर्म पर कुछ महत्त्वपूर्ण विचार
Karm पर कुछ महत्त्वपूर्ण विचारकों ने अपने वक्तव्य में क्या कहा जानते हैं।
- इस संसार में कोई मनुष्य स्वभावत: किसी के लिए उदार, प्रिय या दुष्ट नहीं होता। अपने कर्म ही मनुष्य को संसार में गौरव अथवा पतन की ओर ले जाता है।-नारायण पंडित (Narayan Pandit)
- कर्म करना बहुत अच्छा है। पर वह विचारों से आता है। इसलिए अपने मस्तिष्क को उच्च विचारों एवं उच्चतम आदर्शों से भर लो, उन्हें रात-दिन अपने सामने रखो। उन्हीं में से महान कर्मों का जन्म होता है।-महर्षि अरविंद (Maharishi Arvind)
- केवल वह व्यक्ति सब की अपेक्षा उत्तम रूप से करता है जो पूर्णता निस्वार्थी है। जिसे न धन की लालसा है। न कीर्ति की और ना किसी वस्तु की, -स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda)
- जो निष्काम कर्म की राह पर चलता है। उसे इसकी परवाह कब रहती है कि इसमें उसका आहेत साधन किया, जो तुम जो भी कर्म प्रेम और सेवा की भावना से करते हो। वह तुम्हें परमात्मा की ओर ले जाता है। जिस कर्म में घृणा छिपी होती है। वह परमात्मा से दूर ले जाता है।-सत्य साईं बाबा (Satya Sai Baba)
- कर्म का मूल्य उसके बाहरी रूप और बाहरी फल में इतना नहीं है, जितना कि उसके द्वारा हमारे जीता दिव्यता की वृद्धि होने में है।-महर्षि अरविंद (Maharishi Arvind)
कर्म करने का उद्देश्य पर कुछ विचार
- अविद्या से संसार की उत्पत्ति होती है। संसार से घिरा जीव विषयों में आसक्त रहता है। विषयासक्ति के कारण कामना और कर्म का निरंतर दबाव बना रहता है। कर्म शुभ और अशुभ दो प्रकार के होते हैं और शुभ-अशुभ दोनों प्रकार के कर्मों का फल मिलता है।-मणिरत्नामाला (Mani Ratnamala)
- कर्मयोगी अपने लिए कुछ करता ही नहीं है अपने लिए कुछ भी नहीं चाहता और अपना कुछ मानता भी नहीं। इसलिए उसमें कामनाओं का नाश सुगमता पूर्वक हो जाता है।
-स्वामी विश्वासजी (Swami Vishwasji) - कर्म करने और उसका फल पाने के बीच लंबा समय लग जाता है। जिनकी प्रतीक्षा धैर्य पूर्वक करनी पड़ती है। बीज को वृक्ष बनाने में कुछ समय लगता है। अखाड़े में दाखिल होते ही कोई पहलवान नहीं हो जाता है। विद्यालय में प्रवेश पाते ही कोई ज्ञानी नहीं हो जाता है। कामयाबी देर से मिलती है। कर्म क्षेत्र चाहे कोई भी हो, -स्वर्ण सूत्र (svarn sootr)
- जो व्यक्ति छोटे-छोटे कर्मों को भी ईमानदारी से करता है। वह बड़े-बड़े कर्मों को भी ईमानदारी से कर सकता है।-सैमुअल (Samuel)
- कर्मठ इहलोक परलोक का ध्यान कर कर्म नहीं करता, वह तो बस में क्रियारत रहता है।-भारतमुनि (Bharatmuni)
कुछ महत्त्वपूर्ण कर्म के सिद्धांत
- इस धरती पर कर्म करते हुए 100 साल तक जीने की इच्छा रखो, क्योंकि कर्म करने वाला ही जीने का अधिकारी होता है। जो कर्मनिष्ठा छोड़कर भोग वृत्ति रखता है। वह मृत्यु का अधिकारी बनता है।-वेद (Veda)
- कर्म वह आइना है जो हमारे स्वरूप हमें दिखा देता है। अतः हमें कर्म का एहसानमंद होना चाहिए, -विनोबा भावे (Vinoba Bhave)
- कर्मशील लोग शायद ही कभी उदास रहते हो।कर्मशीलता और उदासी दोनों साथ-साथ नहीं रहती है।-बॉबी (Bobby)
- काम को आरंभ करो और अगर काम शुरू कर दिया है तो उसे पूरा करके ही छोड़ो, -विनोबा भावे (Vinoba Bhave)
- कर्मशील व्यक्ति के लिए हवाएँ मधु बहाते हैं, नदियों में मधु बहता है और औषधियाँ मधुमेह हो जाती है।-ऋग्वेद (Rigveda)
मानव जीवन में कर्म की गति
- कर्म ही मनुष्य के जीवन को पवित्र और अहिंसक बनाता है, -विनोबा भावे (Vinoba Bhave)
- जो निष्काम कर्म की राह पर चलता है। उसे उसकी परवाह कब रहती है कि किसने उसका अहित साधन किया ।-बंकिमचंद्र (Bankimchandra)
- फलासक्ति छोड़ो और कर्म करो, आशा रहित होकर कर्म करो, निष्काम होकर कर्म करो। यह गीता कि वह ध्वनि है जो भुलाई नहीं जा सकती है। जो कर्म छोड़ता है वह गिरता है। कर्म करते हुए जो भी उसका फल छोड़ता है वह चढ़ता है।-महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi)
- भविष्य चाहे कितना ही सुंदर हो विश्वास ना करो, भूतकाल की चिंता ना करो, जो कुछ करना है उसे अपने पर और ईश्वर पर विश्वास रखकर वर्तमान में करो।-लांगफेलो (Longfellow)
- निष्काम कर्म ईश्वर को ऋणी बना देता है और उसे सूद सहित वापस करने के लिए बाध्य हो जाता है।-स्वामी रामतीर्थ (Swami Ramathirtha)
कर्मशील की गति पर कुछ महत्त्वपूर्ण विचार
- जैसे तेज समाप्त हो जाने से दीपक बुझ जाता है। उसी प्रकार कर कर्म के छिड़ हो जाने पर दैव नष्ट हो जाता है।-वेदव्यास महा (Ved Vyas Maha)
- फल मनुष्य के कर्मों के अधीन हैं, बुद्धि कर्म के अनुसार आगे बढ़ने वाली है। तथापि विद्वान और महात्मा लोग अच्छी तरह से विचार कर ही कोई करते हैं।-चाणक्य (Chanakya)
- खेल में हम सदा ईमानदारी का पल्ला पकड़कर चलते हैं, पर अफ़सोस है कि कर्म में हम इस ओर ध्यान तक नहीं देते हैं, -रसिकन (Rasikan)
- वह कार्य सबसे अच्छा है जिससे बहुसंख्यक लोगों को अधिक से अधिक आनंद मिल सके.-फ्रांसिस हचिसन (Francis Hutchison)
- जैसे फूल और फल किसी की प्रेरणा के बिना ही अपने समय पर वृक्षों में लग जाते हैं, उसी प्रकार पहले के किए हुए कर्म भी अपने फल भोग के समय पर उल्लंघन नहीं करते-वेदव्यास (Vedvyas)
वास्तव में karm पर कुछ महत्त्वपूर्ण विचार
- आभाग्य से हमारा धन, नीचता से हमारा यस, मुसीबत से हमारा जोश, रोग से हमारा स्वस्थ, मृत्यु से हमारे मित्र, हमसे छीन जा सकते हैं। किंतु हमारे कर्म मृत्यु के बाद भी हमारा पीछा करेंगे। कोल्टन (Colton)
- जहाँ देह वहाँ कर्म तो है ही उससे कोई मुक्त नहीं है। तथापि शरीर की प्रभु मंदिर बनाकर उसके द्वारा मुक्ति प्राप्त करना चाहिए. महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi)
- कर्म की पारीसमाप्ति ज्ञान में और कर्म का मूल भक्ति अथवा संपूर्ण आत्मसमर्पण में है।-अरविंद घोष (Arvind Ghosh)
- कर्म सदैव सुख ना ला सके परंतु कर्म के बिना सुख नहीं मिलता।-डिजरायली (Disraeli)
- मनुष्य के कर्म ही उसके विचारों की सबसे अच्छी व्याख्या है।-लॉक (Lock)
- कर्म ही पूजा है और कर्तव्य पालन भक्ति है।-सत्य साईं बाबा (Satya Sai Baba)
- जीवन में किए हुए कर्म को परिवर्तन करने की पूर्ण असभ्यता से अधिक दुख में और कुछ नहीं है।-गाल्सवर्दी (Galsvardi)
पोस्ट निष्कर्ष
दोस्तों आपने इस आर्टिकल के माध्यम से कुछ महत्त्वपूर्ण महापुरुषों ने दिए हुए संदेश, जिसमें Karm करने का उद्देश्य एवं उनके प्रकार को जाना। आपको यह ऊपर बताई हुई लाइने बहुत ही सार्थक लगी होंगे। आप अपने दोस्तों के साथ व्हाट्सएप, फ़ेसबुक और अन्य सोशल नेटवर्क पर ज़्यादा से ज़्यादा शेयर करें। धन्यवाद
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